लगन में मगन रहने का आधार – बैलेंस – राजयोगिनी बीके संतोष दीदी
जीवन में कलाओं का विकास करना ही जीवन को अच्छा बनाना है – संतोष दीदी
ग्वालियर: ईश्वर की याद में या लगन में मगन वही रह सकता है जिसके जीवन में बैलेंस हो।
आध्यात्मिकता से हमारे जीवन में बैलेंस आता है, और हमारा व्यवहार भी अच्छा हो जाता है।
आध्यात्मिकता से कार्य बनते है बिगड़ते नहीं। यदि आप आध्यात्मिकता को जीवन में अपनाते है तो हर कार्य आपका व्यवस्थित और सुंदर होगा। उक्त बात ब्रह्मा कुमारीज प्रभु उपहार भवन माधौगंज मे रशिया से पधारी राजयोगिनी बीके संतोष दीदी ने अपने प्रबचन के दौरान कही।
उन्होंने आगे कहा कि मनुष्य अपने जीवन में कलाओं का विकास करे तो जीवन का आनंद ले सकता है। कलाओं को बृद्धि करने का मूल मंत्र हर कर्म को सेवा समझना। कर्म कार्मेन्द्रियों से भोगने के लिए नहीं लेकिन हमारे कर्म का लक्ष्य दूसरों को सुख देना है।
जैसे- सोचने की कला, देखने की कला, बोलने की कला, सुनने की कला, लिखने की कला, खाना खाने की कला, व्यवहार की कला, समर्पण की कला आदि आदि। यह सब वह कलाएं है जो हमारे जीवन को बेहतर बनाने में हमारी मदद करती है। सामान्य रीति से कर्म करना और बेहतर ढंग से कर्म करना दौनों में अंतर है।
सोचने कि कला – सकारात्मक संकल्पों कि रचना करना ही सोचने कि कला है |
देखने की कला – हम अपनी आंखों से जब भी देंखें तो हमारी दृष्टि सदा रहने बाली अविनाशी चीज पर जाए अस्थायी और विनाशी चीजों पर हमारा ध्यान न हो यह देखने कि कला है।
बोलना की कला – बोलना एक कला भी है और बला भी है अगर आपके बोल मधुर और अच्छे है तो वह लोगों को आपके करीब ले आते है लेकिन यदि बोल ठीक नहीं है, बोल में कटुता है, स्वार्थ है। तो यह बोल हमारे और दूसरों के बीच में भाई भाई कि जगह गहरी खायी बना देते है।
हमेशा सकारात्मक और अच्छा सुनना सुनने कि कला को दर्शाता है।
लिखनें कि कला जिससे दिल भी खुल जाए बुद्धि भी खुल जाए।
खाने कि कला – उतना खाना है जितना शरीर को चाहिए और ईश्वर कि याद उसमें शामिल हो तो भोजन भी शक्ति देता है।
व्यवहार कि कला – कौन सा व्यवहार संबंध है और कौन सा व्यवहार बंधन है। यह आपको पता होना चाहिए तो जीवन का आनंद ले सकते है। बंधन होगा तो दुख होगा और संबंध होगा तो सुख मिलेगा।
अब हमें चैक करना है कि हमारा कर्म संबंध है या बंधन। हमेशा याद रहे हमारे कर्म से सेवा हो और यह तब हो सकता है जब हम स्वयं को ट्रस्टी समझें। और जो भी कर्म करते है वह प्रभु को समर्पित करना ही व्यवहार करने कि कला है इसी को व्यवहार और परमार्थ का बैलेंस भी कहते है।
कार्यक्रम में सैकड़ो की संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।